श्रीनगर से पहलगाम की यात्रा…अपने ही आईने में

यात्रा के दौरान हम प्राय : वर्तमान में ही होते हैं, अन्यथा या तो हमें भविष्य की चिंता सताती रहती है, या हम भूतकाल की स्मृतियों में उलझे रहते हैं. जब भी हम किसी विशिष्ट संस्कृति को समझने के उद्देश्य से उसके निकट जाते हैं, तो वास्तव में हम अपने विश्व – दृष्टिकोण और जीवन – दिशा का विस्तार कर रहे होते हैं. कुछ ऐसा ही एहसास तब हुआ जब सद्भाव एकता मिशन के तत्वावधान में कश्मीर यात्रा की शुरुआत हुई. नागरिक समाज से जुड़े कुछ लोग, जो राष्ट्रवाद और मानवीय सरोकारों से प्रेरित थे, उन्होंने पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद कश्मीर जाने का निर्णय लिया.

दिल्ली से आरंभ हुई इस यात्रा में पहली मुलाकात बस में कश्मीरी लोगों से हुई, जो अपने घर लौट रहे थे. उनमें अधिकांश छात्र थे, जो गर्मियों की छुट्टियां अपने परिवार के साथ बिताने जा रहे थे. एक कश्मीरी छात्रा के पिता, जो मेरे सहयात्री थे, ने बताया कि कश्मीरियत की संस्कृति सदैव अमन पसंद रही है. लेकिन भारत-पाकिस्तान के बीच विभाजन के बाद उत्पन्न राजनीतिक संघर्षों ने इस शांतिप्रिय संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया है. उनसे संवाद करते हुए ऐसा लगा मानो कश्मीर की यात्रा तो मेरे लिए वहीं से शुरू हो गई. उन्होंने एक बात कही जो मुझे विशेष रूप से याद रही — आप कश्मीर में किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिलेंगे जिसके पास रोटी, कपड़ा और मकान न हो. ” और यह बात सच भी साबित हुई. पंजाब और जम्मू कश्मीर को पार करते हुए जब हम कश्मीर पहुंचे, तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सचमुच किसी आनंदित वातावरण में प्रवेश कर लिया हो. निर्माण कार्यों के कारण उड़ती धूल – मिट्टी से मुक्ति मिल गई थी. हरियाली से भरी धरती, ऊंचे- ऊंचे सुंदर पहाड़ और नीला आसमान मन में प्रकृति के प्रति गहरा अनुराग उत्पन्न कर रहे थे. जैसे ही हमने जम्मू- कश्मीर की सीमा में प्रवेश किया, हमारे तीनों साथियों के मोबाइल की सिम में काम करना बंद कर दिया. लेकिन स्थानीय कश्मीरी साथियों ने अपने हॉटस्पॉट साझा कर हमें इंटरनेट की सुविधा प्रदान की — यह उनका अपनापन था जो हमारे दिल को छू गया. जब हम होटल कैसर पहुंचे, तो वहां के सौंदर्यबोध, कला, वास्तु कला और आतिथ्य में परंपरा और विनम्रता का अद्भुत संयोजन देखने को मिला. परंतु इससे भी अधिक आकर्षक और आनंद कारण रहे — विशिष्ट समाजवादी नेता व पूर्व मंत्री रमाशंकर सिंह, प्रखर लोहिया वादी तथा सेवानिवृत न्यायाधीश टी. गोपाल सिंह, लोहिया समाजवाद के प्रखर चिंतक अरुण श्रीवास्तव और डॉ. परमजीत मान जैसे गुणीजन व विचारशील व्यक्तियों का साथ. इसके अलावा युवा साथियों में उत्सव यादव और देवी से शर्मा के साथ खूब हंसी मजाक और आत्मीय संवाद भी हुआ. रात्रि भोज के पश्चात, चर्चा का लाभ उठाते हुए कुछ साथियों ने लाल चौक और उसके आसपास के क्षेत्र का भ्रमण करने निकल पड़े. रात के 11 बजे तक हम लोग आसपास की गलियों और इलाकों में बेफिक्री से घूमते रहे. बंजारों की रौनक, कश्मीरी की भोलापन और सौंदर्य हमें लगातार आकर्षित कर रहे थे. इस दौरान कई कश्मीरी भाइयों से संवाद भी हुआ. जब भी हम रास्ता पूछते, वे न केवल विन्रमता से दिशा बताते, बल्कि हाल-चाल भी पूछते. धीरे-धीरे रात गहराती गई, गलियां सुनसान हो गई, और कहीं-कहीं पुलिस या स्थानीय लोग ही दिखाई देते थे. आश्चर्य की बात यह रही कि एक अनजान शहर में इतनी रात घूमने के बावजूद कहीं भी कोई भय का अनुभव नहीं हुआ. रात की अच्छी नींद के बाद सुबह 5 बजे नींद खुल गई. कश्मीर की शांत गलियों से गुजरते हुए कुछ साथी मॉर्निंग वॉक के लिए निकल पड़े. इस दौरान प्रख्यात समाजवादी नेता रमाशंकर सिंह से मुलाकात हुई और उन्होंने भी हमारे साथ भ्रमण पर निकल पड़े. झेलम के किनारे चलते हुए वे पेड़ – पौधों, इमारतों, सड़कों और परिवहन जैसे तमाम विषयों पर चर्चा करते गए. साथ ही, उन्होंने कश्मीर के इतिहास, 1990 के दशक के बाद के राजनीतिक संकट और सांसकृतिक उपलब्धियों पर गहन विचार साझा किए. इसके साथ ही रमाशंकर सिंह ने कश्मीर की प्रसिद्ध रेस्टोरेंट्स की चर्चा की, विशेष रूप से लाल चौक की मशहूर रेस्टोरेंटअहदू का उल्लेख किया. उन्होंने बताया कि उस रेस्टोरेंट तीन बार आतंकी हमले हो चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद अहदू के मालिक ने हर बार इसे फिर से बनाया और संजोया है.

सुबह में रमाशंकर जी की ऊर्जावान वॉक को देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा था कि वे 74 वर्ष के हैं. शायद मैंने पहली बार इस उम्र में इतना और फिट देखा. वॉक के दौरान जब भी उन्हें किसी चीज को लेकर कोई जिज्ञासा होती, वे वहीं मौजूद स्थानीय लोगों से उसके बारे में पूछते और जानकारी प्राप्त करते. यह बात स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी कि वे जितने परिश्रमी है, उतने ही जिज्ञासु भी. जब भी कोई अनोखी चीज दिखती, वे उसकी तस्वीर अपने मोबाइल में कैद कर लेते. हालांकि, उस दिन कश्मीर में दिल्ली से भी ज्यादा गर्मी महसूस हो रही थी. सुबह भरपूर नाश्ता करने के बाद, हम लोग संदीप पांडे के नेतृत्व में आयोजित ” समाजवाद की पाठशाला” के साथियों से मिलने के लिए लाल चौक की ओर निकल पड़े. वहां पहुंचते ही, सबसे पहले वहां के स्थानीय लोगों से संवाद हुआ. एक चाय की दुकान पर हम रुके. जैसे ही हमने बातचीत शुरू की, ऐसा लगा मानो वे हमारे ही आने का इंतजार कर रहे थे. बहुत आत्मीयता और प्रसन्नता के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने हमें चाय ऑफर की. कुछ ही देर में, एक कश्मीरी महिला ने अपने हाथों से हमें बिस्किट भी खिलाए. मेहमानों के प्रति इतना प्रेम बहुत कम स्थानों पर देखने को मिलता है. इसके बाद हम समाजवाद की पाठशाला के सहभागी साथियों से मिले और फिर पहलगाम के लिए रवाना हो गए. पूरी यात्रा हंसी – मजाक, टिप्पणियों और आत्मीय संवाद से भरी रही. हम सबसे पहले जमींदार केसर किंग नामक दुकान पर रुके, जो श्रीनगर से थोड़ी दूर स्थित है. वहां हमने कहवा — जो की एक पारंपरिक कश्मीरी पेय है — का स्वाद लिया और विचार – विमर्श किया . इस दौरान, धारा 370 के हटने के सामाजिक प्रभावों पर भी चर्चा हुई. वहां के कुछ स्थानीय लोगों ने अपने विचार साझा किए. फिर हम लोग पहलगाम की ओर बढ़ते हुए एक सेब के बागान में रुके. काफी देर तक सेबों और अचारों को लेकर चर्चाएं होती रही. इसी बीच सभी साथियों ने फोटोग्राफी में अपनी अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए तस्वीरें खींचीं. सफर के दौरान रास्ते में दिखने वाले हर वृक्ष के रमाशंकर जी उसके महत्व के साथ जानकारी साझा करते रहे. वहीं जुनैद भाई, जो हमारे गाइड और होस्ट थे, हर क्षेत्र का इतिहास और विशेषता विस्तार से बता रहे थे. हर साथी अपनी विशेषज्ञता और दृष्टिकोण के अनुसार विचार साझा कर रहा था. मानो यह यात्रा केवल पर्यटन नहीं, बल्कि ज्ञान, संवाद, मनोरंजन और विमर्श का अद्भुत संगम बन गई थी. यह कैसी यात्रा थी जिसे जीवन में कभी भुलाया नहीं जा सकता. अब तो ” कश्मीर” का नाम सुनते ही वही अनुभूतियां और दृश्य मन में ताज हो उठते हैं. फिर जब ट्राउट मछली का जिक्र आया, तो रमाशंकर सिंह ने जुनैद की मदद से हम सभी को एक विशिष्ट रेस्टोरेंट में ले जाने का प्रस्ताव रखा, जहां हम इस मछली का स्वाद ले सकें. कुछ ऐसे भी साथी थे जिन्होंने मांस मछली का सेवन छोड़ दिया था, लेकिन उन्होंने भी इस विशेष अवसर पर उसका स्वाद चखा.
इसी दौरान प्रख्यात सोशलिस्ट लीडर डॉ सुनीलम और ग्वालियर के साथी शत्रुघ्न जी आ गए और उनके साथ हम फिर पहलगाम की ओर रवाना हुए. वहां पहुंच कर जब जब स्थानीय लोगों से बातचीत हुई, तो पहले की घटना को लेकर काफी स्पष्ट जानकारी सामने आई. यह देखकर स्थानीय लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई कि हम लोग फिर से कश्मीर में प्रिया चांद को उत्साहित करने के उद्देश्य से आए हैं. उन्होंने पूरे दिल से हमसे बातचीत की और अपने अनुभव साझा किए. इस बीच सिटिजन्स फॉर डेमोक्रेसी के साथी डॉ शशि शेखर, डॉ हरीश खन्ना, डॉ अनिल ठाकुर, सलीम भाई, अंवंतिका और दीपिक ढोलकिया से मुलाकात हुई. हम सभी ने लगभग 1 घंटे तक अपने-अपने कश्मीर अनुभवों का एक दूसरे के साथ साझा किया . लेकिन इस संवाद से पहले, हम सभी एकत्र होकर ” जय हिंद” और ” जय कश्मीर ” के नारे लगाए और भारत माता की जय का उद्घोष किया — यह एकता और सम्मान का प्रतीक क्षण था. संवाद की औपचारिक शुरुआत साथी डॉ. सुनीलम ने की. उन्होंने पहलगाम आतंकी हमले के संदर्भ में नागरिक समाज के प्रतिरोध और एकजुटता की भूमिका को रेखांकित किया. इस मौके पर सिटिजन्स फॉर डेमोक्रेसी के सलीम भाई ने सभी नागरिक समाज के साथियों का अभिवादन करते हुए कहा कि कश्मीर की पीड़ा को शब्दों में बयां करना आसान नहीं है और न ही पर्याप्त समय है. उन्होंने विशेष रूप से कश्मीर की जेलों में बंद बेगुनाह युवाओं की स्थिति पर ध्यान आकृष्ट कराया और बताया कि इस तरफ पहलगाम की आतंकी हमले के बाद कश्मीरियों को देशभर में निशाना बनाया गया. उन्होंने अपने संबोधन में न केवल कश्मीर की समस्याओं को उजागर किया, बल्कि नागरिक समाज की जिम्मेदारी को भी रखा. उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के बाद ड्रोन हमलों का जिक्र किया, जिसमें पुंछ इलाके में 23 से अधिक लोग मारे गए. सलीम भाई ने बताया कि कश्मीर के लोग स्थाई शांति समाधान के लिए बरसों से प्रतीक्षा कर रहे हैं. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा किए गए हमलों और कश्मीर की जनता द्वारा सहन की गई पीड़ा की चर्चा की. जुनैद भाई ने यह भी बताया कि कश्मीरी लोग घटनाओं से टूटते नहीं, बल्कि फिर से उठ खड़े होते हैं– यही उनकी सहनशीलता का प्रमाण है. उन्होंने कहा, कश्मीर में आज कई महिलाएं ” हाफ विडो ” की स्थिति में है — यानी उन्हें अब तक यह नहीं पता कि उनके पति जीवित है या नहीं. जबकि डॉ. सुनीलम ने शेख अब्दुल रहमान के हवाले से बताया कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन के बाद दंगे हुए, तब बहुत से लोग मारे गए. लेकिन पहलगाम का उल्लेख करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था–” मुझे आशा की किरण कश्मीर में दिखाई देती है, क्योंकि यहां कोई भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ. ” डॉ सुनीलम ने कश्मीर में नागरिकों से हुई मुलाकातों के अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने कहा कि कश्मीर में न तो कोई भिखारी दिखा, और न ही कोई भूमिहीन व्यक्ति मिला. उन्होंने कश्मीर समाज को एक समावेशी समाज की संज्ञा दी. वहीं डॉ शशि शेखर ने भी कश्मीर से जुड़े अपने अनुभवों को साझा किया. उन्होंने कहा कि ” यदि हमें कश्मीर से प्रेम है, तो हमें कश्मीरियों सीधी प्रेम करना होगा. शशि शेखर ने कहा कि लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण में संलग्न तमाम संगठन मानते हैं कि कश्मीर की समस्या, देश की समस्या है, और इसके समाधान के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक है. इस मौके पर विशिष्ट लोहियावादी चिंतक टी गोपाल सिंह ने कहा कि जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को आतंकवाद में खोया है, उन्होंने भी बहुत ही संवेदनशीलता के साथ सुरक्षा– प्रणाली पर सवाल उठाए और उन लोगों के प्रति संवेदना प्रकट की जिन्होंने दूसरों की जान बचाते हुए अपनी जान गंवाई. साथी अनिल ठाकुर ने भी नागरिक समाज से जुड़े हुए कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी साझा की. उन्होंने कहा कि, कश्मीरी समाज में एक विशेष प्रकार का खुलापन है, जिसे भारत के अन्य हिस्सों में देख पाना मुश्किल है. उन्होंने जेलों में बंद सैकड़ों निर्दोष लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की. जबकि समाजवादी विचारक अरुण श्रीवास्तव ने भी अपने अनुभव साझा किए और कहा कि सरकारों की नीतिगत कर्मियों को चिन्हित करते कश्मीर समस्या का समाधान ढूंढना चाहिए. इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए प्रसिद्ध समाजवादी विचारक पूर्व मंत्री रमाशंकर सिंह ने कहा कि कश्मीर में लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे सामाजिक संगठनों को अपनी भाषा– विशेष रूप से राजनीतिक भाषा– पर काम करने की आवश्यकता है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के कुछ हिस्सों में ” हो ईद की राम राम!!” जैसे भाषाई व्यवहार पाए जाते थे, जो एक सांस्कृतिक समन्वय का संकेत है. यही कारण है कि सामाजिक आंदोलनों में कभी-कभी एक रिएक्शनरी ओरिएंटेशन दिखाई देता है, जो दूसरों के सहयोग को आकर्षित करने में सफल होता है. इस मौके पर दीपक ढोलकिया ने भी अपने अनुभव साझा किए. अंत में डॉ हरीश खन्ना ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि इस बार की यात्रा उनके लिए पहले के अनुभवों से लग रही. उन्होंने कहा, उन्हें स्पष्ट रूप से महसूस हुआ कि कश्मीरी युवाओं में एक शांत और सुरक्षित कश्मीर की गहरी आकांक्षा है.
इस मौके पर प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक तथा लोहिया विचार मंच, हैदराबाद के अध्यक्ष सेवानिवृत न्यायाधीश टी. गोपाल सिंह जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को” स्ट्रगल फॉर सिविल लिबर्टी उर्दू वर्शन” बुक भेंट किया और कश्मीर के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक माहौल पर बातचीत की. उनके साथ प्रसिद्ध समाजवादी नेता रमाशंकर सिंह के साथ कई अन्य साथी भी मौजूद थे.