नर्मदा बचाओ आंदोलन

बिना पुनर्वास डूबने या मौत भुगतने मजबूर विस्थापितों पर जुल्मी अत्याचार. गुजरात से खुद के हक का फंड लेकर, विस्थापितों को अधिकार दे सरकार !

नई दिल्ली/ हैदराबाद, 16 जून, 2025. नर्मदा घाटी में ‘ नर्मदा बचाओ मानव बचाओ ‘ के नजरिये और उद्देश्य के साथ चल अहिंसक, सत्याग्रही आंदोलन के अब चार दशक पूरे हो जाने हैं. सरदार सरोवर के मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात. इन तीन राज्यों के किसान, मजदूर, मछुआरे, पशुपालक, वनोपज पर जीने वाले आदिवासी, व्यापारी सभी ने महिला शक्ति के साथ अहिंसक मैदानी और कानूनी संघर्ष के द्वारा तकरीबन 50 हजार परिवारों का पुनर्वास ले लिया. लेकिन आज भी कई विस्थापितों का पुनर्वास बाकी है, एवं पुनर्वास स्थलों पर सुविधाओं के अभाव से, पानी, रास्ते, नालिया– निकास, चारागाह और स्वास्थ्य केंद्र जैसे सुविधाएं अधूरी रह जाने से परेशानी है. कुछ हजार परिवार 2019 से या 2023 में डूबग्रस्त होकर भी पुनर्वास कानून( ट्रिब्यूनल फैसला) नर्मदा योजनाओं के लिए घोषित नीति और 2017 तक के आदेशों के मुताबिक किसी अधिकार– मकान के लिए भूखंड, वैकल्पिक जमीन का हक, गृह निर्माण के लिए अनुदान से वंचित रखे गए हैं. कई बार चर्चा, प्रस्तुति, आवेदनों के बावजूद, कुछ आश्वासनों के बाद भी निर्णय नहीं दिए जाने से, जिला, संभाग या राज्य स्तर पर प्रलंबित रहने से ऐसे दलित, आदिवासी, मजदूर, विधवा व एकल महिलाएं जैसे विस्थापित अन्याय का दंश झेल रहे हैं और कई बिना पुनर्वास मौत भी ! यह हकीकत सर्वोच्च अदालत के, कुछ उच्च न्यायालय के आदेशों का ही नहीं, मानवीय और संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन बता रही है. नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण जैसी अंतर राज्य संस्था निष्क्रिय दिखाई देती है जबकि उनके वार्षिक अहवालों में मध्य प्रदेश राज्य स्तरीय ‘ नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण’ की ओर से प्राप्त जानकारी के आधार पर पुनर्वास पूरा होकर उर्वरित कार्य ( बैलेंस) ‘0’ बताया जा रहा है, यह धक्का दायक है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी नकारकर 2017 और 2019 तक आदेश पारित किए हैं. कई बार ठोस मुद्दों पर चर्चा के बाद भी, सरदार सरोवर प्रभावित सात तहसीलों में ‘ पुनर्वास अधिकारी ‘7 पद 2 सालों से रिक्त क्यों रखे गए हैं ? पुनर्वास का भार अनुविभागीय अधिकारियों पर डालकर, कार्य क्यों धीमा किया गया या ठप्प सा रखा गया है? सर्वोच्च अदालत के आदेश से गठित शिकायत निवारण प्राधिकरण के पांच सदस्यों के पद सितंबर 2024 से रिक्त रखकर, तकरीबन 7 हजार शिकायतें — प्रकरण प्रलंबित होते हुए भी, भूतपूर्व न्यायाधीशों की नियुक्ति क्यों नहीं की जा रही है ? इन सवालों को दुर्लक्षित करना क्या असंवेदना साबित नहीं करती है ? सबसे महत्व का मुद्दा यह भी है कि कुछ सालों से मध्य प्रदेश और गुजरात शासन के बीच वित्तीय सहायता ( फंडिंग ) के मुद्दे पर विभाग जारी होकर मध्यस्थाता की प्रक्रिया से भी आज तक निराकरण नहीं हुआ है. जबकि डूबग्रस्त हुई शासकीय भूमि, वन भूमि की भरपाई और सभी विस्थापितों के संपूर्ण पुनर्वास का खर्चा गुजरात में ही उठाना नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसले मुताबिक यानी कानून बंधनकारक है, तब भी क्यों इन मुद्दों पर तकरीबन 7 हजार करोड़ से अधिक राशि की मध्य प्रदेश की मांग पूरी नहीं हो पाई है ? मध्य प्रदेश राज्य को 192 गांव और धरमपुरी नगर के हजारों परिवार, हजारों हेक्टर डूब क्षेत्र तथा पुनर्वास स्थलों के लिए अर्जित भूमि, हजारों मकान, 2 हजार से अधिक हेक्टर जंगल सब कुछ सरदार सरोवर के लिए होने के बाद और करोड़ों रुपयों का पूंजी निवेश के बाद भी, मध्य प्रदेश शासन को
बिजली का एकमात्र अपेक्षित लाभ भी नहीं मिलने से 900 करोड रुपए की भरपाई क्यों मांगनी पड़ रही है ? जबकि सरदार सरोवर की लागत अब अधिकृत रूप से 75 करोड़ रुपए की होना जाहिर किया है तो उसमें स्टैचू ऑफ यूनिटी और पर्यटन परियोजनाओं का खर्च शामिल किया गया है, तो पुनर्वास के लिए भुगतान क्यों नहीं संभव? क्यों टाल रही है गुजरात शासन और मध्य प्रदेश शासन, नहीं ले पा रही है अपना हक ? आज गुजरात की कच्छ, सौराष्ट्र की जनता हैरान है उन्हें उपेक्षित सिंचाई और पेयजल भी सही तरीके से और मात्रा में उपलब्ध न होने से जैसी सुविधा से, आजीविका से वंचित विस्थापित आदिवासी भी रास्ते पर उतरकर टावर पर चढ़कर तथा न्यायालय में पहुंचकर सवाल उठा रहे हैं. बांध के नीचेवास के किसान, मछुआरे, गांव नगर निवासी भी भुगत चुके हैं, 2023 जैसी बांध से अक्षम्य देरी से 15.16 के बदले 17 सितंबर 2023 को छोड़े गए 18 लाख क्यूसेक्स पानी से हुई खेती, मकान, नाव, जाल, भूजल तथा मंदिर तीर्थ की बर्बादी! 2023 में ही बैकवॉटर क्षेत्र के डूब से बाहर घोषित किए गए, पुनर्वास अधूरा छोड़ें हजारों विस्थापित , मध्य प्रदेश के ऊपरी क्षेत्र के 172 गांव में भी डूब भुगत चुके हैं. इन सबके लिए जरूरी है, ठोस निर्णय, संपूर्ण पुनर्वास का एवं नीचेवास कि गुजरात की जनता के लिए पर्याप्त पानी निरंतर छोड़े जाने का! इन सब मुद्दों पर चर्चा विमर्श के बावजूद, शोध अहवाल भी नजर अंदाज करके क्यों नहीं लिया जा रहा निर्णय, जो तत्काल आवश्यक है? 2025 का वर्षा कल शुरू हो चुका है ! बड़वानी, धार, अलीराजपुर, खरगोन जिले की जनता का सवाल है, क्या जल प्रवाह का ( ऊपरी सभी बांधों से छोड जाते ) नियमन, सरदार सरोवर और ऊपरी बांधों के गेट्स समय पर खोलकर नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण से नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण तथा गुजरात शासन के साथ समन्वय से किया जाएगा? डूब ग्रस्तों का सालों से प्रलंबित पुनर्वास का कार्य समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा ? कब तक ? जनता के साथ मां नर्मदा को भी अधिकार है जीने का. उसे दूषित करने वाला औद्योगिक प्रदूषण, अवैध खनन शहरों का गंदा सीवेज बिना उपचार का, और अवैध क्रूझ से जल परिवहन रोकना, आज तक कई आदेश, कानून, निर्देशों के बावजूद नहीं हो रहा है! क्या नर्मदा का पूजन, महोत्सव परिक्रमा करने वाले नर्मदा भक्तों को भी इसे दुर्लक्षित करना और नदी माता पर गंभीर आघात से जनजीवन, स्वास्थ्य पर भी आघात होना मंजूर है ? नर्मदा बचाओ आंदोलन चार दशक पूर्ति के बाद भी ” नर्मदा बचाओ! मानव बचाओ!” का संकल्प जारी रखेगा जरूर! ऐसा विचार और संकल्प भगवान सेप्टा, हेमेंद्र मंडलोई और प्रसिद्ध नर्मदा बचाओ आंदोलन के नायिका मेधा पाटकर का है.