इस मंदिर में रहती हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी, हर साल भोग ग्रहण करने आते हैं भगवान

हैदराबाद से समाचार संपादक देहाती विश्वनाथ की विशेष रिपोर्ट
भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के मंदिर के सामने हर साल अपना रथ रोकते हैं और उनसे भोग ग्रहण करते हैं. मान्यता है कि इसे खाने के बाद ही रथ आगे बढ़ते हैं.

पुरी / हैदराबाद, 17 जून, 2025. पुरी का मौसी मां मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं बल्कि महाप्रभु श्री जगन्नाथ के साथ गहरा भावनात्मक रिश्ता भी दर्शाता है. यहां देवी अर्धशनी या ‘ अर्धशोशिनी ‘ को महाप्रभु जगन्नाथ की मौसी माना जाता है. यह मंदिर ग्रांड रोड पर स्थित है और रथ यात्रा के समय इसमें विशेष चहल – पहल होती है. इस मंदिर को ओड़िशा के केशरी वंश के राजाओं के समय में बनवाया गया था. रथ यात्रा के दौरान इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इससे जुड़ी कई विशेष परंपराएं निभाई जाती है.
हर साल रुकता है भगवान का रथ
श्री गुंडीचा दिवस पर जब महाप्रभु श्री जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा रातों पर सवार होकर बहुड़ा यात्रा यानी गुंडिचा मंदिर से अपने मंदिर की तरफ वापसी की यात्रा पर निकलते हैं, तो उनके रथ मौसी माँ मंदिर के सामने रुकते हैं. यहां भगवान को उनकी मौसी के हाथों से बना ‘ पोडा पीठा ‘ का भोग लगाया जाता है और इसे खाने के बाद ही रथ आगे बढ़ते हैं. रथ यात्रा के दिन जब भगवान गुंडिचा मंदिर की ओर जा रहे होते हैं, तो रथ थोड़ी देर के लिए मौसी माँ मंदिर के पास रुकता जरूर है. चूंकि भगवान को गुंडिचा मंदिर जाने की बहुत जल्दी होती है, तो रथ ज्यादा देर नहीं रुकते, लेकिन बाहुड़ा यात्रा के दिन वे अपनी मौसी के दरवाजे जरूर रुकते हैं और उनसे भोग ग्रहण करते हैं.
भगवान को पसंद है पोड़ा – पीठा
माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ को पोड़ा – पीठा बहुत पसंद है. यह पीठा खास तौर पर उन्हीं के लिए तैयार किया जाता है. पीठा में पनीर, चावल का आटा, मैदा, घी, किशमिश, बादाम, कपूर, दालचीनी और लौंग जैसी चीजें मिलाई जाती है. परंपरा के मुताबिक, भगवान अपनी मौसी से भोग लेकर ही श्री मंदिर की ओर बढ़ते हैं.
मौसी माँ मंदिर की कथा
प्राचीन मान्यता है कि एक समय पुरी में समुद्र का पानी इतना बढ़ गया था कि पूरा क्षेत्र जलमग्न हो गया था. सब देवी अर्धशनी या अर्धशोशिनी ने उस पानी को अपने में समाहित कर लिया था और पुरी को बचा लिया. तभी से उन्हें इस मंदिर में पूजा जाता है. मौसी माँ, यानी देवी अर्धशनि, का स्वरूप देवी सुभद्रा जैसा दिखता है. ऐसा भी कहा जाता है कि बहुत पहले पुरी के बड़ – डांड ( ग्रांड रोड) को ‘ मालिनी’ नदी दो हिस्सों में बांटती थी. तब रथ यात्रा के लिए 6 रथ बनाए जाते थे. पहले 3 रथों पर देवी देवताओं को मालिनी नदी के किनारे तक लाया जाता था फिर नावों से विग्रहों को नदी पारकराकर बाकी 3 रथों में बैठा कर गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता था. परेशानी को देखकर देवी अर्धशनि ने नदी का पानी अपने में समाहित कर लिया. तभी से मान्यता है कि भगवान बाहुडा यात्रा के दिन मौसी माँ मंदिर रुकते हैं और उनका बनाया पोड़ा पीठा खाते हैं.
गुंडिचा माता मंदिर हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी घर
गुंडिचा मंदिर भगवान जगन्नाथ के मंदिर से 3 किमी दूर स्थित है. इसका निर्माण कलिंग वास्तुकला में बनाया गया है. यह भगवान जगन्नाथ जी की मौसी गुंडिचा को समर्पित है . मान्यता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भगवान यहां 7 दिनों तक ठहरते हैं साथ ही मान्यता यह भी है कि रथ यात्रा में जगन्नाथ बलभद्र एवं सुभद्रा गुंडिचा मंदिर आते. जहां उनकी मौसी उन्हें पीठा, रसगुल्ला खिलाकर स्वागत करती है . एक और कहानी यह भी है कि मंदिर के निर्माता राजा इंद्रधनु की रानी का नाम गुंडिचा था. जिसके नाम पर इस मंदिर का निर्माण किया गया . गुंडिचा ने देव शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाई जाने वाली जगन्नाथ जी की दिव्य छवि पर एक नजर डाली. छवि से प्रभावित होकर उन्होंने अपने पति से मंदिर बनवाने और रथ यात्रा शुरू करने पर जोर दिया. वहीं एक अन्य मत है कि भगवान जगन्नाथ मंदिर निर्माण से इतना प्रसन्न थे कि उनके घर गुंडिचा मंदिर जाने का वादा किया था.