
बदलने लगी बिहार में चुनावी बयार, चुनाव पूर्व सर्वे में तेजस्वी की सरकार, क्या फेल हो रही नीतीश की रेवड़ियां ?

हैदराबाद से समाचार संपादक देहाती विश्वनाथ की खास रिपोर्ट
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर हाल ही में आए एक सर्वे ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. इस चुनाव पूर्व सर्वे ने जहां तेजस्वी यादव अब राहुल गांधी को खुश होने का मौका दे दिया, वहीं नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ रही एनडीए की टेंशन बढ़ा सकती है.
पटना/ हैदराबाद, 28 सितंबर 2025. बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले क्या सियासी बयार बदलने लगी है. हाल ही में आए एक चुनावी सर्वे ने राज्य की राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है . लोकपोल के सर्वे के मुताबिक, ” बिहार चुनाव” में आरजेडी नीत महागठबंधन को 118 से 126 सीटें मिलने की संभावना है, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ( एनडीए) 105 से 114 सीटों तक सिमट सकता है. लोकपोल के सर्वे में बिहार चुनाव में आरजेडी — कांग्रेस के महागठबंधन की जीत का अनुमान जताया गया है. यह सर्वे तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल ( आरजेडी ) और उसके सहयोगियों के लिए एक बड़ा बढ़ावा माना जा रहा है, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड( जेडीयू ) और बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के लिए यह एक चेतावनी हो सकता है. इस सर्वे को देखकर सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार की तमाम चुनावी रेवड़ियां फेल हो रही है? आईए, इस सर्वे और बिहार की बदलती राजनीतिक परिस्थितियों पर विस्तार से नजर डालते हैं.
क्या कह रहा लोकपोल का सर्वे ?
लोक पोल के सर्वे में बताया गया है कि बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से महागठबंधन को 118 से 126 सीटें मिल सकती है, जबकि एनडीए को 105 से 114 सीटें. वहीं अन्य पार्टियों को 2 से 5 सीटें मिलने की संभावना है. वोट शेयर की बात करें तो महागठबंधन को 39% से 42% वोट मिलने की अनुमान है, जबकि एनडीए को 38% से 41% वोट मिल सकते हैं. हालांकि, यह अंतर वैसे तो बेहद कम है, लेकिन सीटों की संख्या में महागठबंधन का बढ़त लेना तेजस्वी यादव के लिए एक बड़ा नॉरेटिव सेट करता है. सर्वे में यह भी बताया गया है कि राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा और एनडीए नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों ने वोटरों के मन में बदलाव लाया है. युवा और पहली बार वोट डालने वाले मतदाता महागठबंधन की ओर ज्यादा झुकाव दिखा रहे हैं. इसमें एक बड़ा तेजस्वी यादव की ” नौकरी देने वाली सरकार” के वादे से प्रभावित हैं .
क्या नीतीश कुमार की रेवड़ियां हो रही है फेल ?
नीतीश कुमार की सरकार ने पिछले कुछ महीनो में कई वेलफेयर स्कीम्स की घोषणा की है, जैसे बुजुर्ग और विधवा महिलाओं के लिए मासिक भत्ता, बेरोजगार युवाओं के लिए मासिक सहायता और 125 यूनिट मुफ्त बिजली… इन चुनावी रेवड़ियों पर राज्य का सालाना खर्च 40 हजार करोड रुपए तक पहुंचने की संभावना है, जो राज्य की कुल राजस्व का लगभग 70% है.
क्या ये रेवड़ियां वोटरों को लुभा पा रही है ?
लोकपोल सर्वे के नतीजे इशारा करते हैं कि इन स्कीम्स का असर सीमित रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि वेलफेयर स्कीम्स लंबे समय में प्रभाव डालती है, लेकिन चुनाव से ठीक पहले इनकी घोषणा वोटरों को ज्यादा प्रभावित नहीं करती, खासकर जब विपक्ष नौकरी और विकास के मुद्दे पर आक्रामक हो .
क्या बदल रही है बिहार की सियासी बयार ?
बिहार की राजनीति लंबे समय से जाति, वर्ग और क्षेत्रीय समीकरणों पर आधारित रही है. नीतीश कुमार ने 2005 से इन समीकरणों को संतुलित करके अपनी सरकार बनाई है, लेकिन 2025 के चुनाव में ये समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं. लोकपोल के सर्वे में यह सामने आया है कि युवा वोटर और महिलाएं इस बार महागठबंधन की ओर ज्यादा झुकाव दिखा रहे हैं. राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा ने भी माहौल बनाया है. वहीं, एनडीए की ओर से बीजेपी और जदयू के बीच समन्वय की कमी भी वोटरों को प्रभावित कर रही है. अबl आगे देखना है कि बिहार में ऊंट किस करवट लेती है .