पश्चिम बंगाल में चुनावी गठबंधन को लेकर कांग्रेस और टीएमसी के बीच जुबानी जंग लगातार जारी है. विपक्षी दलों के गठबंधन’ इंडिया’ के लिए जिस राज्य में सीटों की साझेदारी सबसे मुश्किल दिखती है वह पश्चिम बंगाल ही है. हैदराबाद से तेलंगाना ब्यूरो चीफ देहाती विश्वनाथ की यह खास रिपोर्ट.
नई दिल्ली/ कोलकाता/हैदराबाद,8 जनवरी, 2024. पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में बीते दिनों जब पत्रकारों ने कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी से पूछा कि ममता बनर्जी राज्य में कांग्रेस को केवल 2 सीटें देना चाहती हैं तो इस पर अधीर रंजन चौधरी काफी गुस्से में नजर आए. अधीर रंजन चौधरी ने कहा, यह दोनों सीटें हमारे पास हैं. हमें उनकी दया की कोई जरूरत नहीं है. हम अपने दम पर चुनाव लड़ सकते हैं. वह नहीं चाहती कि गठबंधन हो क्योंकि अगर गठबंधन नहीं होता है तो सबसे ज्यादा खुशी पीएम मोदी को होगी और ममता बनर्जी आज जो कर रही हैं, वह पीएम मोदी की सेवा में लगी हुई है. ” यही नहीं, बीते शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना में एक जांच के लिए गई प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की टीम पर हुए हमले के लिए भी अधीर रंजन चौधरी ने ममता सरकार पर निशान साधा. ममता बनर्जी अक्सर आरोप लगाती रही हैं कि वह केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ लड़ रही है, लेकिन राज्य के कांग्रेस और वाम दलों के नेता उनके खिलाफ बोलते रहते हैं . दरअसल, ममता के कथित प्रस्ताव के पीछे राज्य में चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 42 सीटों में से टीएमसी को 22, बीजेपी को 18 और कांग्रेस को2 सीटें मिली थी. जबकि वाम दल राज्य की एक भी सीट नहीं जीत सके. पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि पश्चिम बंगाल की 42 में से करीब 40 सीटों पर बीजेपी और टीएमसी के बीच सीधा मुकाबला हुआ. उन चुनावों में कांग्रेस को केवल बहरामपुर और मालदा दक्षिण की सीट पर जीत मिली थी. जबकि राज्य की 34 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार को 10% से भी कम वोट मिले थे. इनमें से ज्यादातर सीटों पर तो कांग्रेस को दो प्रतिशत के आसपास ही वोट मिले थे. राज्य की मालदा उत्तर सीट पर कांग्रेस को 22.52 प्रतिशत वोट मिले थे . इस सीट पर टीएमसी दूसरे नंबर पर थी . ऐसे में ममता बनर्जी की पार्टी क्या इस सीट को कांग्रेस के लिए छोड़ देगी, यह सवाल भी बना हुआ है. जंगीपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस 19.61 फ़ीसदी वोट हासिल करने में सफल रही थी. लेकिन यह सीट टीएमसी के खाते में गई थी, जबकि दूसरे नंबर पर बीजेपी थी . ऐसे में ममता अपने जीती हुई सीट छोड़ देगी इसकी संभावना भी कम दिखती है. इसके अलावा महज एक और सीट पर कांग्रेस अपना सम्मान बचाने में सफल रही थी. यह मुर्शिदाबाद लोकसभा सीट थी, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार को 25% वोट मिले थे . हालांकि यह सीट भी टीएमसी के खाते में गई थी . यानी यह सीट भी ममता बनर्जी आसानी से छोड़ने वाली नहीं है. ऐसा ही हाल वाम दलों का था.माकपा उम्मीदवारों को 5 सीटों पर 10% या इसे भी ज्यादा वोट मिले थे . लेकिन इनमें से चार सीटों यादवपुर, कोलकाता दक्षिण, श्रीरामपुर, और वर्दमान पूर्व में टीएमसी की जीत हुई थी . जबकि वर्दमान — दुर्गापुर की सीट बीजेपी के खाते में गई थी. बता दें कि अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल के बहरामपुर से सांसद हैं और वह फिलहाल लोकसभा में कांग्रेस के नेता हैं. जाहिर है एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और ममता बनर्जी के बीच रिश्तों की यह तल्लखी भी दोनों दलों के बीच गठबंधन के रास्ते में बड़ी रुकावट मानी जाती है. यह माना जाता है कि अधीर रंजन चौधरी की नाराजगी के पीछे उनके और ममता बनर्जी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. यह तनातानी उस दौर से है जब ममता बनर्जी कांग्रेस में हुआ करती थी. ममता बनर्जी साल 1998 में कांग्रेस से अलग हुई थी और उन्होंने अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाई थी . राजनीति के समझ वाले लोग कहते हैं कि राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस अभी चाहती है कि अंतिम बात वही बोले, जबकि मौजूदा समय में हिंदुस्तान की हकीकत बदल गई है. अब कांग्रेस के पास ज्यादा कुछ बचा नहीं है. ऐसे में अगर कांग्रेस की दुश्मन बीजेपी है और वह उसे हराना चाहती है तो कांग्रेस को उन इलाकों में पंगा लेने से बचना चाहिए, क्षेत्रीय दल मजबूत हैं . बंगाल को ममता अकेले संभाल सकती हैं . यहां कांग्रेस को जूनियर पार्टी का रोल अदा करना चाहिए . पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों की 220 सीटों में बीजेपी को करीब 50 सीट मिलती है . क्योंकि इनमें से ज्यादातर जगहों पर क्षेत्रीय दल बहुत ताकतवर है. हालांकि बीजेपी इन राज्यों में अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश में लगातार लगी हुई है.
अगर गठजोड़ नहीं हुआ तो
यह माना जाता है कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी के पास मुसलमान का बड़ा वोट बैंक है, जो की 27 प्रतिशत के करीब है. लेकिन पिछले कुछ चुनावों में उसके मुस्लिम वोट शिफ्ट हुए हैं. इसलिए ममता बनर्जी चाहती है कि टीएमसी और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो जाए ताकि मुस्लिम वोटो का विभाजन रोका जा सके .