बसंत उत्स्व कला, शिक्षा और सौंदर्य का प्रतीक : सुधा ठाकुर

हैदराबाद से तेलंगाना ब्यूरो प्रमुख देहाती विश्वनाथ की खास रिपोर्ट.

कला, शिक्षा और सौंदर्य का प्रतीक है बसंत उत्सव. प्रसिद्ध लेखिका, कवयित्री व साहित्यकार सुधा ठाकुर कहती हैं , विद्यादायिनी मां सरस्वती आराधना ही बसंत उत्सव पर्व है. इस आलेख के लेखिका सुधा ठाकुर यह मर्म हमारे हैदराबाद स्थित तेलंगाना ब्यूरो प्रमुख देहाती विश्वनाथ को बताई. प्रस्तुत है बसंत उत्सव आलेख.

विश्व में भारतवर्ष समृद्धि कला शिक्षा ‘ सौंदर्य का प्रतीक है । भारत की पुण्य और पावन धरती अनेक पर्वो और उत्सव से समृद्ध है। जिनके द्वारा भारत में उल्लास ही उल्लास और हर्ष व्याप्त है । भारत में अनेक प्रकार के पर्व और उत्सव मनाये जाते हैं जिससे मानव मन हमेशा चेतन प्रसन्न , और उल्लसित रहे। भारत का अतिप्रसिद्ध उत्सव वसन्तोत्सव है । जब विद्याकी देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था । वसंतोत्सव समृद्धि कला शिक्षा और सौंदर्यका प्रतीक है। यह भारत भूमि की समृद्धि प्रसिद्धि प्रकृतिप्रेम तथा कला और कोशल का महापर्व है जीमाध मासकी शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह उत्सव प्रकृति परिवर्तन के साथ ही साथ देवी सरस्वति की आराधना का उत्सव है। जी हमारी शिक्षा ज्ञान संगीत बौद्धिक विकास और अनेक प्रकार की हमारी दक्षताओं का परिचय देता है। ज्ञानरूपी ज्योतिसे अज्ञान और अन्धकार से मुक्ति की प्रेरणा देता है । जड से चेतन की यात्रा को समझता है । वसन्तोत्सव ऋतु परिवर्तन और ऋतुराज वसन्त के आगमन और स्वागत का उत्सव है। वसन्तोत्सव की परम्परा पौराणिक और ऐतिहासिक काल से चली आ रही है। हमारा भारतीय साहित्य भी इसका साक्षी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भविष्य पुराण में भी वसंतोत्सव का उललेख मिलता है । वहाँ कामदेव और रतिकी पूजाका वर्णन है । इस पुराण की अनुसार वसन्त कामदेव और रविका पुत्र है जिसके जन्म पर प्रकृति झूम उठती है । भगवान कृष्ण ने भी गीतामें कहा है कि ऋतुओं में मैं ऋतुराज बसंत हूँ माना जाता है कि इसी दिन सौंदर्य के देवता कामदेव ने पंचाशर द्वारा संसार का अभिसार किया था। भगवान कृष्णने भी अपनी रासलीला के द्वारा इस उत्सव की शोभा बढ़ाई थी। भारतीय साहित्य में भी वसन्तोत्सव की चर्चा की गई है। विभिन्न साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं का वर्णन इस प्रकार किया है। कालिदासने अपनी रचना ऋतु संहार के छठे सर्गमें वसन्त ऋतु और इस उत्सव का अत्यन्त सुन्दर चिचण किया है तथा नारी के अनेक कामुक भावों का चित्रण भी अत्यन्त सजीव किया है । संस्कृति साहित्य के प्रसिद्ध नाटक कार चारूदत ने भी अपनी रचनाओं में वसंतोत्सव को लिखा है। कवि भवभूति ने भी अपनी रचना मालती माधव में इस उत्सव का वर्णन किया है । कामसूत्रकार वात्सायन ने भी अपने ग्रन्थ में वसन्तोत्सव वर्णन किया है । यदि भारतीय इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो सातवीं और आठवीं शताब्दी मे भी इस उत्सव को मनाया जाता था । राजा हर्षवर्धन के समय इस उत्सव को मनानेका विशेष प्रचलन था जो हमें बाणभट के हर्षचरित्र में भी मिलता है । इसप्रकार इस समय वसन्त ऋतु प्रकृति का एक नया श्रृंगार करती है। रंग-बिरंगे फूलों की सुन्दरता और महक से धरती महकती है । वसन्तोत्सव कुंठाओ और काम से मुक्त होने का उत्सव है। यह उत्सव कामदेव के पंचबाण अर्थात् रुप रसु स्पर्श, गंध और शब्द का उत्सव है। हमारी प्राचीन स्थापत्य कला में भी इसे महत्व दिया गया है । यह उत्सव हमारे देश के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों और तरीकों से मनाया जाता है। यदि वसंत पंचमी की विशेषताओं को देखा जाए वो यह पृथ्वीराज चौहान की याद दिलाता है। इसी दिन सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह का विवाह हुआथा । राजा भोज का जन्म भी इसी दिन हुआ था। हिन्दी साहित्य के प्राण महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का भी जन्म इसी दिन हुआ था। धार्मिक दृष्टि से यह दिन अत्यन्त विशेष और महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी शुभ कार्य को इस दिन किया जा सकता है किसी मूर्हत की आवश्यकता नहीं होती है। वसंतोत्सवके मुख्य आर्कषण होली ‘ का त्यौहार ‘ गाये जाने वाले फाग और पतंगोत्सव आदि है इस प्रकार भारतीय आध्यात्मिकता विद्या, ज्ञान, संगीत कला वाणी , बुद्धिमता ‘ रस और नृत्य का यह महापर्व है ।