सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को मंगलवार शाम तक इलेक्टोरल बॉन्ड का पूरा डेटा सौंपने को कहा था. एसबीआई ने मंगलवार शाम 5:30 बजे चुनाव आयोग को डेटा सौंप दिया था. इसके बाद चुनाव आयोग ( ईसी ) गुरुवार को इसे सार्वजनिक किया .
हैदराबाद से तेलंगाना ब्यूरो प्रमुख देहाती विश्वनाथ की यह खास रिपोर्ट.
नई दिल्ली/हैदराबाद : चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया( एसबीआई) से मिला डेटा गुरुवार को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया. चुनाव आयोग की वेबसाइट में 763 पेजों की दो लिस्ट डाली गई है . एक लिस्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की डिटेल है . दूसरी लिस्ट में राजनीतिक पार्टियों को मिले बॉन्ड का ब्यौरा है. चुनाव आयोग की वेबसाइट में अपलोड की गई सारी जानकारी व बॉन्ड की खरीद से जुड़ा हुआ है. इलेक्टोरल बॉन्ड 1लाख रुपए, 10 लख रुपए और एक करोड रुपए के खरीदे गए हैं . हालांकि, दी गई जानकारी में यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं है कि किस कंपनी ने किस पार्टी को डोनेशन दिया है. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी थी . सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को मंगलवार शाम तक इलेक्टोरल बॉन्ड का पूरा डेटा सौंपने को कहा था. एसबीआई ने उसी शाम चुनाव आयोग को डेटा सौंप दिया था. इसकी बात चुनाव आयोग ( ईसी ) ने गुरुवार को इसे सार्वजनिक किया. 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को फटकार लगाई थी और 12 मार्च शाम तक यह डिटेल देने का निर्देश दिया था. चुनाव आयोग के डेटा मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए बीजेपी, कांग्रेस, एआईडीएमके, बीआरएस, शिवसेना, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, टीएमसी, अकाली दल बादल, को डोनेशन मिला. इलेक्टोरल बॉन्ड के खरीददारों में अपोलो टायर्स, लक्ष्मी मित्तल, एडलवाइस, पीवीआर, केवेंटर, सुलावाइन, वेलस्पन और सन फार्मा शामिल है . इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों में टोरेंट पावर, भारती एयरटेल, डीएलएफ कमर्शियल डेवलपर्स, वेदांता लिमिटेड, भी शामिल है . ग्रासिम इंडस्ट्रीज, मेघा इंजीनियरिंग, पिरामल एंटरप्राइजेज, ने भी राजनीतिक दलों को चंदा दिया है. राजनीतिक दलों को किस डोनर ने दिया कितना डोनेशन ? फ्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज- 1368 करोड़ रुपए, मेघा इंजीनियरिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर लि. 966 करोड रुपए, किवक सप्लाई चेन प्रा. लि. 410 करोड रुपए, वेदांता लि. 400 करोड रुपए, हल्दिया एनर्जी लि. 377 करोड रुपए, भारती ग्रुप 247 करोड रुपए, एस्सैल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लि. 224 करो रुपए, वेस्टर्न यूपी पावर ट्रांसमिशन 220 करोड रुपए, केवेंटर फूड पार्क इंफ्रा लि. 194 करोड रुपए, मदनलाल लि. 1 85 करोड रुपए, डीएलएफ ग्रुप 170 करो रुपए,यशोदा सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल 162 करोड रुपए, उत्कल एल्यूमिना इंटरनेशनल 145. 3 करोड़ रुपए, जिंदल स्टील और पावर लि. 123 करोड रुपए, बिरला कार्बन इंडिया 105 करोड रुपए, रुंगटा सन्स 100 करोड रुपए, डॉ रेड्डीज 80 करोड रुपए, पिरामल एंटरप्राइजेज 60 करोड रुपए, नवयुग इंजीनियरिंग 55 करोड रुपए, शिरडी सई इलेक्ट्रिकल्स 40 करोड रुपए, एडलवाइस ग्रुप 40 करोड रुपए, सिपला लिमिटेड 39.2करोड रुपए,लक्ष्मी निवास मित्तल 35 करोड रुपए, ग्रासिम इंडस्ट्रीज 33 करोड रुपए, जिंदल स्टेनलेस 30 करोड रुपए, बजाज ऑटो 25 करोड रुपए, सन फार्मा लैबोरेटरीज 25 करोड रुपए, मैनकाइंड फार्मा 24 करोड रुपए, बजाज फाइनेंस 20 करोड रुपए, मारुति सुजुकी इंडिया 20 करोड रुपए, अल्ट्राटेक सीमेंट 15 करोड रुपए और टीवीएस मोटर्स 10 करोड रुपए, एसबीआई में सुप्रीम कोर्ट से मांगी थी मोहलत 4 मार्च को एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था. एसबीआई का कहना था कि डेटा का मिलान करने में समय लगेगा. इसके लिए 30 जून तक की समय दिया जाए.
11 मार्च को हुई थी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से जुड़े मामले में एसबीआई की याचिका पर सोमवार 11 मार्च को सुप्रीम कोट ने करीब 40 मिनट सुनवाई की थी. एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था — बॉन्ड से जुडी जानकारी देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए. इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा — पिछली सुनवाई ( 15 फरवरी) से अब तक 26 दिनों में आपने क्या किया? सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा – एसबीआई 12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करें. इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी. 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया . यह एक तरह का प्रमिसरी नोट होता है, जिसे बैंक नोट भी कहा जाता है. एसबीआई से इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है . सरकार का दावा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग व चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी. साथ ही ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा. दूसरी ओर, इसका विरोध करने वालों का तर्क था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे यह चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं.