हैदराबाद से तेलंगाना ब्यूरो चीफ देहाती विश्वनाथ की यह विशेष रिपोर्ट .
पटना/हैदराबाद, 2024. राजनीति के बदलते मौसम के विशेषज्ञ माने जाने वाले रामविलास पासवान 8 अक्टूबर 2020 को दुनिया को अलविदा कह दिया मगर उनकी विरासत की लड़ाई आज भी बिहार की राजनीति पर हावी है. यह लड़ाई सत्तारूढ़ एनडीए के लिए मुसीबत का सबब बन गई है. रामविलास पासवान के सबसे छोटे भाई और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने भाजपा नेताओं की पहल पर भतीजे चिराग पासवान के हाथ जा रही राजनीतिक विरासत में आखिरी वक्त पर अड़ंगा डाल दिया है . इसे लोकसभा चुनाव के एन मौके पर एनडीए के लिए बिहार में लोकसभा सीटों के उम्मीदवारों की घोषणा का काम मुश्किल में फंस गया है. एनडीए की घमासान से फायदा उठाने की चाह में इंडिया गठबंधन ने भी सीटों के बंटवारे की घोषणा फिलहाल टाल दी है. इंडिया गठबंधन को मुकेश साहनी का भी इंतजार है, जो एनडीए से टिकट नहीं मिलने की सूरत में वापस तेजस्वी के पाले में आ सकते हैं. ऐसे में चिराग के चाचा पशुपति पारस के मुंह से फूटे बगावती सुर ने इंडिया गठबंधन की आस बढ़ा दी है. नाजुक हालत में दोनों ओर से सीट बंटवारे की घोषणा का काम अब अगले दो-चार दिनों तक के लिए टल गया है . जबकि उम्मीद थी कि शुक्रवार या शनिवार को नीतीश मंत्रिमंडल के विस्तार के साथ बिहार में सीट बंटवारे और उम्मीदवारों की घोषणा सहजता से हो जाएगी. आखिरी वक्त में रामविलास पासवान की विरासत का विवाद सुलझाने के लिए कई राउंड की बैठकों के बाद भाजपा के शीर्ष नेता इस निर्णय पर पहुंचे थे कि चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा को एनडीए में शामिल किया जाए और सीटों का समझौता चिराग गुट तक ही सीमित रखा जाए. बदलते हालात में चाचा पशुपति कुमार पारस को फिलहाल केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल तो रखा जाए मगर आगे राजनीतिक वनवास के लिए उन्हें मना लिया गया है. सूत्रों के मुताबिक पशुपति पारस को भविष्य में किसी राज्य का राज्यपाल बनाए जाने की बात थी. साथ ही एक अन्य भतीजे और समस्तीपुर के सांसद प्रिंस राज को लोकसभा की बजाय राज्य विधानसभा की राजनीति में एडजस्ट करने की तैयारी थी. इसके लिए नीतीश कुमार मंत्रिमंडल के हालिया विस्तार में शामिल किया जाना था . मगर इन मौके पर चाचा पशुपति पारस के बिफर जाने से सब गुण गोबर हो गया . पशुपति पारस ने पटना जाकर सांसद प्रिंस राज को मंत्रिमंडल में शामिल होने से रोक लिया और हाजीपुर से ही लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी होने का दावा ठोक दिया. हाजीपुर सीट परिवारिक विरासत पर दावेदारी के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी सीट से रामविलास पासवान चुनाव लड़ते थे. चिराग पासवान फिलहाल जमुई से सांसद हैं . पारिवारिक विरासत की लड़ाई में केंद्रीय मंत्री पारस को नीतीश कुमार ने एनडीए में अपनी हैसियत बढ़ाने की मंशा से बढ़ावा दिया था. खास परिस्थिति में यह सुनिश्चित किया था कि प्रधानमंत्री मोदी उनको अपनी सरकार में कैबिनेट मंत्री की हैसियत से शामिल करें. साफ है कि बड़े भाई रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत पशुपति पारस एक तरफा चिराग के हाथ में नहीं जाने देना चाहते. पशुपति पारस यह नहीं चाहते कि शिवपाल यादव की तरह उन्हें हाशिये पर धकेल दिया जाए. अपना स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने के साथ वह रामविलास पासवान के वारिस भी बने रहना चाहते हैं. इसलिए हाजीपुर सीट पर उन्होंने दावा ठोक दिया और संकेत भी दे दिया है कि बात नहीं बनने पर वह एनडीए को बाय-बाय कहकर ” इंडिया गठबंधन के साथ जाने में संकोच नहीं करेंगे.