नेपाल में एक बार फिर राजशाही की वापसी के लिए प्रदर्शन हो रहा है. मंगलवार को हजारों लोग राजशाही के समर्थन में काठमांडू की सड़कों पर उतरे . इस दौरान प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच झड़प हो गई . पुलिस ने लाठी चार्ज किया और वॉटर – कैनन का इस्तेमाल किया. सूत्र बताते हैं कि इस दौरान कई प्रदर्शनकारी घायल हुए हैं.
हैदराबाद से राजनीतिक संपादक देहाती विश्वनाथ की विशेष रिपोर्ट
काठमांडू/ हैदराबाद, 10 अप्रैल, नेपाल में समय-समय पर राजशाही की वापसी और हिंदू राष्ट्र की मांग उठती रही है. एक बार फिर यह डिमांड उठ रही है. राजशाही की बहाली की मांग कर रहे हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी काठमांडू की सड़कों पर उतरे. इस दौरान उनकी पुलिस से झड़प हो गई . बता दें कि 2008 में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था. उनके सैकड़ो समर्थकों ने पीएम और अन्य प्रमुख सरकारी विभागों के दफ्तरों तक पहुंचने की कोशिश की एवं रास्ते में लगे पुलिस बैरिकेड्स को तोड़ने की कोशिश करते देखे गए. हालांकि प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने पीछे धकेलने के लिए हल्की लाठी चार्ज और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया . खबर है कि नेपाल में हिंदू राष्ट्र की मांग को लेकर राजा ज्ञानेंद्र के प्रमुख समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी व नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से आह्वान किया गया था. प्रदर्शन के दौरान भारी संख्या में प्रदर्शनकारियों ने ” राजशाही ” वापस लाओ, गणतंत्र को खत्म करो” नारेबाजी कर रहे थे. प्रदर्शन कार्यों की वीर ने कहा है, हम अपने राजा और देश को जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं.
हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग
प्रदर्शनकारियों ने नेपाल को एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनाने मांग शुरू कर दी है. 2007 के अंतरिम संविधान में नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया था. वहीं, 2006 में कई हफ्तों तक नेपाल की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के कारण राजा ज्ञानेंद्र को अपना सत्तावादी शासन छोड़कर सत्ता वापस संसद को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा था . 2 साल बाद संसद ने पुरानी राजशाही को खत्म करने के लिए मतदान किया.तब से ज्ञानेंद्र बिना किसी शक्ति या सरकारी संरक्षण के एक सामान्य नागरिक की तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
क्यों राजा की वापसी चाहते हैं लोग
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के पास अभी भी कुछ समर्थन है, लेकिन सत्ता में वापसी की संभावना कम है. राजशाही के समर्थक देश के प्रमुख राजनीतिक दलों पर भ्रष्टाचार और विफल शासन का आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि लोग राजनेताओं से खुश नहीं है. राजशाही खत्म होने के बाद नेपाल में 13 सरकारें बन चुकी है. यह सरकारें भारत और चीन के बीच फंसी रहती है. कुछ सप्ताह पहले ही नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ लिया तथा केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल ( यूएमएल ) के साथ मिलकर नई सरकार बनाई, जिसका रूख चीन समर्थक रहा है.