नई किस्म की राजनीति करते हैं नरेंद्र मोदी : बोले कपिल सिब्बल

देशभक्ति के अर्थ बदल गए हैं और उग्र राष्ट्रवाद ने देशभक्ति की जगह ले ली है . मोदी राष्ट्र के पर्याय बन गए हैं. देशभक्ति का कोई भी कृत्य मोदी के समर्थन में होना चाहिए अन्यथा आप देशद्रोही करार दिए जाएंगे. आप न तो विदेश नीति की आलोचना कर सकते हैं और न ही किसी हिस्से पर चीनी कब्जे के बारे में बात कर सकते हैं.

हैदराबाद से तेलंगाना ब्यूरो प्रमुख देहाती विश्वनाथ की खास रिपोर्ट.


नई दिल्ली/हैदराबाद,19 जनवरी,2024. देश के प्रसिद्ध वकील कपिल सिब्बल ने कहा है कि जब मैं स्कूल में था तो कभी यह जानने की जहमत ही नहीं उठाई कि मेरे सहपाठियों की जाति क्या थी? इसकी कभी चर्चा नहीं होती थी. उच्च शिक्षा के लिए सेंट स्टीफेन्स कॉलेज गया तो वहां देश के कोने-कोने से आए छात्र भारत की व्यापक विविधता के प्रतिनिधि थे . हम सभी एक परिवार की तरह रहते. हम सभी देशभक्ति भाव से भरे युवा थे. विश्वविद्यालय से निकलने के उपरांत पेशेवर जीवन के शुरुआती दौर में जाति या नस्ल का मुद्दा कभी सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा ही नहीं रहा. एक युवा पेशेवर के रूप में मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मैं ऐसा भारत देखूंगा, जैसा आज बन गया है. राजनीति में आने पर मुझे जाति की महत्व समझ में आई. कपिल सिब्बल कहते हैं कि राजनीति का मंडलीकरण उन पिछड़े वर्गों के लिए प्रेरक था, जो स्वयं को राष्ट्रीय मुख्य धारा से अलग– थलग मानते थे. मंडल ने पिछड़े समुदायों का सशक्तिकरण किया. मायावती का मुख्यमंत्री बना भारतीय राजनीतिक परिदृश्य का एक ऐतिहासिक पड़ाव था. सच्चर कमेटी ने अल्पसंख्यकों की दशा – दिशा दलितों से भी गई गुजरी बताई, पर उनकी दशा सुधारने को बनाई गई सरकारी योजनाओं को तुष्टिकरण की कवायद के रूप में देखा जाने लगा. जबकि अन्य वर्गों के लिए नीतिगत लाभों पर वैधता की मोहर लगी. अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गों को संवैधानिक आधार पर सशक्त बनाया गया. आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों तक भी आरक्षण का विस्तार कर हिंदू बहुसंख्यकों की शिकायतों के समाधान का प्रयास हुआ. समय के साथ राष्ट्रीय सार्वजनिक विमर्श का स्वरूप भी बदलता गया. भाजपा के निराशाजनक चुनाव प्रदर्शन के बीच अक्टूबर 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा एक राजनीतिक मास्टर स्ट्रोक रही. इसने हिंदुओं में भावनात्मक उबाल भरा. उसने जाति और पंथ से परे जाकर हिंदुओं को समग्रता में संगठित एवं एकीकृत किया. अपने राजनीतिक विमर्श के केंद्र में धर्म के स्थान ने भाजपा के सितारे चमका दिए. ऐसा कपिल सिब्बल का कहना है . सिब्बल कहते हैं कि यह प्रयोग तो सफल रहा, लेकिन इसने राजनीतिक ताने बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया. भाजपा ने अपनी घोषणा पत्र में राम मंदिर के निर्माण का वादा किया, लेकिन वह विवादित ढांचे को गिराने के बाद ही बनाया जा सकता था. 6 दिसंबर, 1992 को ऐसा हो गया. भारत की राजनीति सच में बदल गई. फिर भी तब तक हिंदुओं के वोटो की लामबंदी आंशिक रूप में हो पाई थी. विवादित ढांचे को गिराए जाने के बाद भी भाजपा को सत्ता नहीं मिल सकी. जबकि नरसिंह राव के नेतृत्व में कांग्रेस ने अल्पमत सरकार चलाई . उसके बाद दो अल्पमत सरकारें सत्ता में रही. फिर 1998 में वाजपेयी सरकार बनी. भाजपा फिर 2004 में चुनाव हार गई और उसके बाद 2014 तक संप्रग की सत्ता रही. वाजपेयी के दौर में भी लोकतांत्रिक भावनाएं पोषित होती रही. कपिल सिब्बल के मुताबिक, 2014 में अपनी ताजपोशी के साथ नरेंद्र मोदी हिंदुओं की उस धारा के प्रतीक के रूप में उभरे, जो भगवान राम के आदर्शों से सराबोर नहीं. गुजरात में 2002 के दंगों ने मोदी को एक आक्रामक व्यक्तित्व के रूप में स्थापित कर दिया. गुजरात में उनके शासनकाल में ही गोधरा में जलाए गए हिंदुओं जैसी राष्ट्रीय आपदा का प्रतिशोध लिया गया . नए उभार लेते भारत के कथित शिल्पकार मोदी उस नई किस्म की राजनीति के मूल में है, जो आडवाणी और वाजपेयी से भी अधिक खतरनाक है . संप्रति धर्म ही अकादमिक विमर्शों के केंद्र में है. हिंदुत्व की राजनीति में भारत की विविधता तार – तार हो रही है. हिंदुत्व का उभार सभी जातियों और नस्लों पर हावी होना चाहता है. हमारे विविधता से भरे सामाजिक ताने बाने को सहेजने और कमजोर, वंचितों के संरक्षण की मुहिम चलाने वाली आवाजों को दबाने में भी इस सरकार का कोई सानी नहीं. ऐसा कपिल सिब्बल कहते हैं.