हमने कब यह सोचा था कि
ऐसा भी दिन आएगा.
जिन्हें थी हमसे प्यार मोहब्बत,
दुश्मन वह बन जाएगा.
प्यार भरे दिल में नफरत है,
उनका जी भर जाएगा.
मत पूछो अपनों के लिए तुम,
जख्म और दुख दर्द दिया.
जब तक खुद पर नहीं बीतेगा,
तब तक समझ न पाएगा.
हमने कब यह सोचा था कि,
ऐसा भी दिन आएगा.
अश्क़ नहीं रुकते आंखों के,
कोई पोछ न पाएगा.
सीने में उठती हैं, आहें,
कोई क्या संभालेगा.
दिल में गम का बोझ उठाकर,
कैसे कोई जी पाएगा.
किस्मत में जो लिखा हुआ है,
होकर वह रह जाएगा.
देहाती कवि की रचना यह
कौन किसे समझाएगा.
हमने कब यह सोचा था कि,
ऐसा भी दिन आएगा.
देहाती विश्वनाथ. Call – 9937437686