प्रियंका गांधी ने क्यों छोड़ा यूपी का मैदान, सोची समझी रणनीति या नाकामी पर मुहर!

कांग्रेस संगठन में एक बड़े फेरबदल के तहत प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश का प्रभार छोड़ने पर मोहर लगा दी गई है. जबकि झारखंड के प्रभारी रहे अविनाश पांडे अब यूपी के प्रभारी होंगे. यह कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी अब कांग्रेस के अखिल भारतीय प्रचार अभियान में जुटेंगी. हालांकि प्रियंका गांधी ने अक्टूबर 2022 में ही कांग्रेस प्रभारी महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था. लेकिन इस पर अब मुहर लगी है. हैदराबाद से तेलंगाना ब्यूरो चीफ देहाती विश्वनाथ की यह खास रिपोर्ट
नई दिल्ली/हैदराबाद,25 दिसंबर, 2023. कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़ से लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर पूर्व के राज्यों में प्रियंका की कैंपेनिंग के बाद यह साफ हो गया कि वह अब लोकसभा चुनावों में पार्टी की स्टार प्रचारक के तौर पर दिखाई देगी. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह से हार के बाद उन्होंने कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के लिए प्रचार किया था. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि दोनों जगह उनके प्रचार से पार्टी को फायदा हुआ और उसे जीत मिली. एक कयास यह भी लगाया जा रहा है कि शायद अब वो भारत जोड़ो यात्रा के दूसरे दौर में अपने भाई राहुल गांधी का साथ देगी. हालांकि, कांग्रेस के राजनीतिक फैसलों पर नजर रखने वालों का कहना है कि प्रियंका गांधी को प्रभाव पहले ही छोड़ देना चाहिए था. उत्तर प्रदेश में प्रभारी रहते वह कुछ खास नहीं कर सकी . ऐसे में सवाल है कि प्रियंका गांधी से उत्तर प्रदेश का प्रभार लिया जाना राज्य की चुनावी राजनीति में उनकी नाकामी पर आधिकारिक मुहर है या फिर यह एक सोची समझी रणनीति है, जहां उन्हें यूपी की जगह उन राज्यों में जिम्मेदारी दी जाए जहां कामयाबी की संभावना ज्यादा है. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि जिस पार्टी ने 1947 से 1989 के बीच कुछ वर्षों तक छोड़कर लगभग चार दशक तक यूपी में राज किया वह अब लोकसभा की एक सीट पर सिमट गई है. उसे पार्टी के प्रभारी को तो बहुत पहले इस्तीफा दे देना चाहिए था . हालांकि, प्रियंका गांधी के समर्थकों का कहना है कि यूपी में कांग्रेस काफी पहले से कमजोर हो गई थी ऐसे में महज तीन-चार साल में उनसे चमत्कार की उम्मीद कैसे की जा सकती है. लेकिन राजनीतिक जानकार कहते हैं कि प्रियंका गांधी 1984 से राजीव गांधी के साथ अमेठी जाती रही है . भले सोनिया गांधी पूरे देश में प्रचार करने की वजह से वहां नहीं जा पाती हों लेकिन प्रियंका गांधी रायबरेली और अमेठी सीट के प्रचार में जरूर जाती थी. इसका मतलब कम से कम दो सीटों पर तो कांग्रेस को जितना ही चाहिए था. जब प्रियंका के प्रभारी रहते कांग्रेस अमेठी हार गई तो फिर उनके बने रहने का क्या तुक बनता है. यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस के अंदर एक बड़ा तबका है जो प्रियंका गांधी के कामकाज के तरीके को पसंद नहीं करता है. पार्टी से जुड़े कुछ लोग दावा करते हैं कि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में कोई कुछ नहीं बोलता है लेकिन प्रियंका गांधी के सैकडों आलोचक है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि पंजाब में कांग्रेस की जो दुर्दशा हुई उसके लिए पूरी तरह प्रियंका गांधी जिम्मेदार थी . उन्होंने अमरिंदर सिंह को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनवाया. नवजोत सिंह सिद्धू को काफी तवज्जो दी गई और आखिरकार पंजाब कांग्रेस के हाथ से निकल गया. इसके लिए प्रियंका गांधी जिम्मेदार है क्योंकि पंजाब का सारा कामकाज वही देख रही थी . वे ही सारे फैसले ले रही थी. विश्लेषक कहते हैं कि राजस्थान में भी प्रियंका गांधी ने ऐसा ही किया . वहां सचिन पायलट पर कोई कार्रवाई न होने का नुकसान पार्टी को भुगतना पड़ा. सूत्रों की माने तो सचिन पायलट अशोक गहलोत के पूरे कार्यकाल में खुलेआम विद्रोह करते रहे. बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की धमकी देते रहे. इस बार तो दौसा भरतपुर बेल्ट में कांग्रेस को गुर्जरों के वोट नहीं मिले तो सिर्फ इसलिए की सचिन पायलट गहलोत के खिलाफ खड़े थे. इसकी वजह से कांग्रेस ने करीब 20 सीटें गंवाई. अगर कांग्रेस को यह सीटें मिल जाती तो सरकार बन सकती थी. इसके बावजूद सचिन पायलट को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाकर पुरस्कृत किया गया.+ कौन लेता है प्रियंका के फैसले ? सूत्र बताते हैं कि प्रियंका गांधी के विरोधी उन पर जमीन पर काम करने वालों की जगह ड्राइंगरूम पॉलिटिक्स करने वालों को तवज्जो देने का आरोप लगाते रहे हैं . दरअसल, प्रियंका गांधी को फिलहाल अपने करीबी सलाहकारों से छुटकारा पाना होगा. जिस दिन वह ये कर लेंगे उनकी राजनीति सुधर जाएगी. ये लोग उनके फैसलों पर हावी है. कहा जा रहा है कि यूपी का प्रभार छोड़कर वह लोकसभा चुनाव में पूरे देश में स्टार प्रचारक के तौर पार्टी की कैंपेनिंग करेंगी. इससे कांग्रेस को फायदा होगा. यह ठीक है कि पूरे देश भर में उनके प्रति एक आकर्षण है. लोग सभाओं में उन्हें देखने जाते हैं. कुछ लोग उनकी बात सुनते भी हैं . लेकिन वह कांग्रेस को वोट दिला पाएंगी इसमें संदेह है. वो किसी भी सीट से खड़े होकर यह नहीं कह सकती कि वो चुनाव लड़ेंगी और जीत जाऐंगी. जो शख्स कभी चुनाव न लड़ा हो, ऐसे किसी को जीता सकता है. जबकि उनके भाई राहुल गांधी और मां सोनिया गांधी कई चुनाव लड़ चुकी है . प्रियंका गांधी से पूछा जाना चाहिए कि पार्टी में उनका योगदान क्या है? उनकी मां सोनिया गांधी मनरेगा, सूचना का अधिकार और भोजन का अधिकार का कानून लेकर आई. उन्होंने इतने काम किए. राहुल गांधी ने पूरे देश की पदयात्रा की . लेकिन प्रियंका ने क्या किया? उन्होंने सिर्फ सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नेताओं को बढ़ावा दिया.+ उत्तर प्रदेश की गांठ कैसे खुलेगी?+ उत्तर प्रदेश की गांठ खोलना कांग्रेस के लिए बहुत ही मुश्किल साबित होता जा रहा है. क्या कांग्रेस प्रियंका से बहुत ज्यादा उम्मीद कर रही थी? इस सवाल के जवाब में राजनीतिक विश्लेशको का आकलन है कि 2003 में जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से बात होती थी तो वे लोग खुद को लाचार महसूस करते थे. आज भी वही बात है. 20 साल गुजर गए लेकिन कांग्रेस यूपी में मजबूत नहीं हो सकी .