त्रिभाषा विवाद

त्रिभाषा विवाद : भाषा उस तिकड़ीकी दरिंदे का कौर है, जो सड़क पर और संसद में कुछ और है

शिक्षा मंत्री त्रिभाषा सूत्र को संवैधानिक प्रावधान बतला रहे हैं . वे झूठ बोल रहे हैं. संविधान में कहीं भी भाषा के मामले में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. संविधान में हिंदी अन्य भारतीय भाषाओं की तरह ही एक भाषा है. लेकिन हिंदीवादी उसे राष्ट्रभाषा कहते रहे हैं.

नई दिल्ली/ चेन्नई/ हैदराबाद, 28 मार्च, 2025. भारत की संघीय सरकार ने तमिलनाडु को समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत दी जाने वाली रकम रोकने की धमकी दी है क्योंकि वह त्रिभाषा फार्मूला लागू नहीं कर रहा है. शिक्षा मंत्री का कहना है कि यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अभिन्न अंग है और तमिलनाडु को इसे लागू करना ही पड़ेगा वरना उसे संघीय सरकार की तरफ से पैसा नहीं मिलेगा. ऊपर से यह बात ठीक लगती है क्योंकि अगर कोई राज्य किसी ‘ राष्ट्रीय’ नीति को लागू न करें तो उसे ‘ केंद्र’ से पैसे की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए. आखिर वह केंद्र का पैसा है . तमिलनाडु ने उलट कर पूछा है कि अगर वह टैक्स का अपना हिस्सा भेजना बंद कर दे तो फिर क्या होगा. पहले भी तमिलनाडु कहता रहा है कि वह जितना टैक्स देता है, संघीय सरकार उस अनुपात में उसे बहुत कम राशि भेजती है. यह कहने पर तमिलनाडु की निंदा की जाती है, यह कहकर कि वह छुद्रता का परिचय दे रहा है. आखिर वह सिर्फ अपनी बात कैसे कर सकता है ? क्या पूरा देश उसकी जिम्मेदारी नहीं है ? अभी हम इस बात में नहीं पड़ रहे, हालांकि, राज्य की बात में दम है. बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य संघीय कोष में तमिलनाडु जैसे राज्य के मुकाबले कम टैक्स जमा कराते हैं लेकिन उन्हें तमिलनाडु के मुकाबले अधिक राशि मिलती है और तमिलनाडु को अपेक्षाकृत कम राशि दी जाती है. इसके खिलाफ तर्क यह है कि भारत में हर राज्य दूसरे की जिम्मेदारी है, आखिर सब लोग भारतीय हैं और तमिलनाडु कैसे सुखी रह सकता है अगर बिहार या उत्तर प्रदेश पिछड़ा हो ? तमिलनाडु को बिहार के बारे में सोचना चाहिए, लेकिन क्या कभी यह सवाल बिहार या उत्तर प्रदेश से किया जाता है? उनकी सामाजिक चेतना में तमिलनाडु और केरल की क्या जगह है ? संघीय सरकार का रवैया दक्षिण भारत के इन राज्यों के प्रति प्राय : शत्रुतापूर्ण है. यहां तक कि तूफान, सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय और उसके बाद भी संघीय सरकार ने राष्ट्रीय आपदा कोष से उन्हें पर्याप्त राशि देने से इनकार कर दिया . कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक गए हैं. जो संकट के समय हाथ खींच ले, उसकी नीयत पर भरोसा कैसे करें?