वक्फ संशोधन बिल ने बदली राजनीति, मुस्लिम वोट बैंक का डर नहीं, बीजेपी के ,’ नए सेकुलर’ दोस्त
हैदराबाद से समाचार संपादक देहाती विश्वनाथ की विशेष रिपोर्ट
अब भारतीय राजनीति में अघोषित तौर से तीन खेमें बन गए हैं. कांग्रेस, वाम दल, आरजेडी, डीएमके, मुस्लिम लीग, एआइएमआइएम,बीआरएस, और टीएमसी के लिए बीजेपी अभी भी सांप्रदायिक पार्टी है, जबकि ये खुद को सेक्युलर मानती है. तीसरे खेमें में ऐसी राजनीतिक पार्टियां है, जो पहले बीजेपी को सांप्रदायिक मानती थी, मगर अब उसके नीतिगत फैसले के साथ हैं. ये पार्टियां अब मुसलमान को कथित रूप से आहत होने वाले विषयों पर मोदी सरकार को खुलकर समर्थन देती है
मुंबई/ पटना/ अमरावती/ हैदराबाद, 4 अप्रैल, 2025. संसद में वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने के साथ ही
देश की राजनीति में ‘ नई सेक्युलर ‘ पार्टियों की नई जमात भी सामने आ गया, जो मुस्लिम वोटिंग पैटर्न से बेखौफ होकर बीजेपी के एजेंडे के साथ खड़ा है. जेडीयू, तेलुगुदेशम, जेडीएस, एनसीपी, लोजपा ( रामविलास ), आरएलडी और असम गण परिषद जैसी पार्टियों ने वक्फ संशोधन बिल के समर्थन में मतदान किया. इन दलों ने माना कि मोदी सरकार इस बिल के जरिए वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को बचाने का प्रयास कर रही है. एनडीए के बाहर रहने वाली बीजू जनता दल ने भी राज्यसभा में समर्थन देकर नए सेक्युलरों के ग्रुप को और विस्तार दे दिया. मुस्लिम वोट बैंक के सहारे चलने वाले इन राजनीतिक दलों ने विक्फ बिल पर न सिर्फ बीजेपी के साथ कंधा मिलाया बल्कि चर्चा के दौरान सेक्युलरिज्म की नई परिभाषा भी गढ़ी. इन नव धर्मनिरपेक्ष दलों के लिए बीजेपी
सांप्रदायिक नहीं रही. इस बदलाव का असर दशकों तक दिखेगा .
देवगौड़ा की तारीफ, प्रफुल्ल पटेल के तंज के मायने समझिए
राज्यसभा में आलम यह था कि जनता दल ( सेक्युलर ) के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने
वक्फ संपत्तियों की रक्षा के लिए पीएम मोदी की जमकर तारीफ की . उद्धव सेना के सांसद संजय राउत से जो बीजेपी नहीं कह सकी, उसे एनसीपी सांसद प्रफुल्ल पटेल ने सीना ठोककर सुना दिया. उन्होंने कांग्रेस से भी
सवाल किया कि वह शिवसेना के साथ रहकर खुद को सेक्युलर मानती है. जदयू के ललन सिंह ने बीजेपी के मुस्लिम विरोधी होने के आरोपों को खारिज किया. उन्होंने कहा कि विपक्ष के द्वारा नॉरेटिव बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि वक्फ संशोधन बिल मुसलमान विरोधी है. उनका एक बयान काफी चर्चा में रहा, जिसमें उन्होंने विपक्ष को ललकारते हुए कहा कि आपको मोदी का चेहरा पसंद नहीं है तो मत देखिए. पूर्व पीएम देवगौड़ा
और प्रफुल्ल पटेल सेक्युलर पॉलिटिक्स के दो बड़े चेहरे रहे, उन्होंने वक्फ बिल के पक्ष में बीजेपी की पॉलिसी का समर्थन किया.
90 के दशक में कई दलों के लिए अछूत थी बीजेपी
90 के दशक में बीजेपी, शिवसेना, अकाली दल और जदयू के अलावा करीब करीब सभी पार्टियों के लिए अछूत थी.
जेडीयू लालू विरोधी और बिहार की राजनीतिक मजबूरी के कारण एनडीए का हिस्सा बनी. 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी ने गठबंधन की सरकार बनाई मगर उन्हें तेलुगू देशम, डीएमके, आईएडीएमके जैसे दलों का बारी – बारी समर्थन भी शर्तों के साथ मिला. शर्त यह थी कि बीजेपी मुसलमान को आहत करने वाले
मुद्दों से परहेज करेगी . इन शर्तों के साथ असम गण परिषद और आरएलडी जैसी पार्टियां भी एनडीए में आती जाती रही. गठबंधन की मजबूरियों के कारण बीजेपी ने भी दो दशक तक धारा 370, राम मंदिर, समान नागरिक संहिता जैसे कोर मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाल दिया. रामविलास पासवान जैसे नेता ने भी गुजरात दंगों के बाद वाजपेयी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था और सेक्युलर जमात में शामिल हो गए थे.